



प्रसिद्ध कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने निकुम में चल रही सात दिवसीय शिवपुराण कथा के दूसरे दिन श्रद्धालुओं को आध्यात्म, भक्ति और संयम का गहरा संदेश दिया। उन्होंने नारद जी और चंद्रभागा नदी की कथा सुनाकर उपस्थित भक्तों को न केवल भाव-विभोर किया, बल्कि जीवन में संयम, सेवा और सच्चे भाव की महत्ता भी समझाई।


✨ नारद जी की कथा से शिक्षा
प्रदीप मिश्रा जी ने बताया कि देवर्षि नारद हमेशा हर युग में लोककल्याण हेतु भ्रमण करते रहते हैं। उनकी कथाओं में गहराई, ज्ञान और मार्गदर्शन होता है। एक प्रसंग में जब नारद जी अहंकार में आ जाते हैं कि वे सबसे बड़े भक्त हैं, तब भगवान विष्णु उन्हें सच्चे भक्त की पहचान कराने एक ग्वाले के पास भेजते हैं। यह प्रसंग यह सिखाता है कि भक्ति केवल मंत्रोच्चारण या वाद-विवाद नहीं, बल्कि सेवा, श्रद्धा और समर्पण में होती है।
🌊 चंद्रभागा नदी का महत्व
कथा में आगे उन्होंने चंद्रभागा नदी की पवित्रता और उसके नामकरण का उल्लेख किया। यह नदी भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी मानी जाती है। चंद्रभागा एक ऐसी पवित्र धारा है, जिसे संतों, साधकों और तपस्वियों ने आत्मशुद्धि हेतु अपनाया। प्रदीप मिश्रा जी ने इसे मन की शुद्धता का प्रतीक बताया, जो यह सिखाती है कि जब तक हमारा अंतर मन निर्मल नहीं होगा, तब तक सच्ची भक्ति संभव नहीं।
📿 माथे पर चंदन लगाने का रहस्य
उन्होंने कथा में एक रोचक बात यह भी बताई कि जो भक्त माथे पर चंदन या तिलक लगाते हैं, वे न केवल भगवान को प्रिय होते हैं, बल्कि उनका जीवन भी सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। माथे का चंदन आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र (आज्ञा चक्र) सक्रिय करता है।
श्रद्धालुओं की अपार भीड़
दूसरे दिन की कथा में हजारों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे। कथा के हर प्रसंग पर भक्ति से ओतप्रोत माहौल बना रहा। लोग मंत्रमुग्ध होकर कथाएं सुनते रहे और हर प्रसंग में जीवन का सार तलाशते रहे
माथे का चंदन – पहचान सच्चे भक्त की
कथा के दौरान पंडित जी ने अचानक श्रद्धालुओं से पूछा –
“यहाँ कितने लोग हैं जो रोज़ स्नान के बाद माथे पर चंदन लगाते हैं?”
कई श्रद्धालु खड़े हुए। पंडित जी ने कहा –
“शिव भक्त की पहचान उसके माथे पर चंदन की ठंडी छाया से होती है। यह चंदन केवल श्रृंगार नहीं, यह शिव से जुड़ाव का प्रतीक है।”
इस वाक्य ने हर श्रोता को भीतर तक छू लिया। उन्होंने समझाया कि चंदन लगाना केवल परंपरा नहीं, बल्कि शिवभक्ति का गहरा संकेत है।
🙌 भक्ति में डूबा जनसैलाब
दूसरे दिन की कथा में हजारों की संख्या में श्रद्धालु उमड़े। पंडाल में “हर हर महादेव” और “बम बम भोले” के गगनभेदी जयघोष गूंजते रहे। व्यवस्था चुस्त रही और पूरा आयोजन दिव्यता से भरा रहा
“बट वृक्ष के नीचे ब्रह्मा जी का सिर काटा: प्रदीप मिश्रा की कथा में शिवोहम की गूंज”
दुर्ग निकुम — विश्वप्रसिद्ध कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा की कथा में शुक्रवार को उस गूढ़ और गंभीर प्रसंग का उल्लेख हुआ, जिसमें भगवान शिव ने बट (पीपल) वृक्ष के नीचे ब्रह्मा जी का एक सिर काटा। कथा स्थल पर जब यह प्रसंग आया, तो श्रद्धालु भावविभोर हो उठे और वातावरण “शिवोहम… शिवोहम…” के मंत्रों से गूंज उठा।
कथा का सार: अहंकार का विनाश
प्रदीप मिश्रा ने बताया —
> “ब्रह्मा जी जब सृष्टि रचना के बाद स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानने लगे, तो उनका अहंकार सातवें आसमान पर जा पहुँचा। उन्होंने शिव जी से भी श्रेष्ठ बनने का विचार कर लिया। ब्रह्मा जी के पाँच सिरों में से एक सिर से वे झूठ बोलने लगे — कि उन्होंने कैलाश के शिखर को सबसे पहले देखा। यही झूठ और अहंकार उनकी हार का कारण बना।”
शिव जी ने बट वृक्ष के नीचे स्वयं भैरव रूप में प्रकट होकर ब्रह्मा जी को दंडित किया। उन्होंने अपने नाखून से ब्रह्मा जी का एक सिर काट दिया —
और वहीं उच्चारित हुआ:
“शिवोहम… शिवोहम…”
(मैं शिव हूँ, मैं ही सत्य हूँ।)
बट वृक्ष: केवल पेड़ नहीं, साक्षी है न्याय का
प्रदीप मिश्रा ने कहा कि बट वृक्ष केवल एक वृक्ष नहीं, यह साक्षी है उस क्षण का जब
अहंकार का अंत हुआ
सत्य की विजय हुई
और शिव ने यह सिखाया कि मर्यादा से बड़ा कोई नहीं।
श्रद्धालुओं पर प्रभाव
इस प्रसंग के दौरान पूरा कथा पंडाल मौन और मंत्रमुग्ध था। कथा सुनते हुए हजारों लोगों ने आंखें बंद कर “शिवोहम” का जाप किया।
कई भक्तों ने कथा के बाद पीपल के नीचे बैठकर ध्यान भी लगाया।
धार्मिक शिक्षा:
> अहंकार, चाहे देवताओं में भी हो, शिव उसका अंत करते हैं। और जब आत्मा अहंकार से मुक्त होती है, तभी वह कह सकती है — शिवोहम।