शास. प्राथमिक शाला गातापार में श्री गुरुभागवत की प्रतिमा का अनावरण

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अंडा // शासकीय प्राथमिक स्कूल ग्राम गातापर में श्री गुरुभागवत की प्रतिमा का अनावरण हुआ। साथ ही पूज्य गुरुदेव द्वारा रचित भजन “मेरे साई के दरबार मे” के ऊपर छात्रों ने शानदार प्रस्तुति दी। अंत मे समस्त छात्रों को नोट बुक (कॉपी) वितरण किया गया। उक्त कार्यक्रम सयुक्त रूप से स्कूल प्रबंधन, शिरडी साई दरबार गातापर और श्री गुरुभागवत एजुकेशनल ट्रस्ट द्वारा सयुंक्त रूप से किया गया। कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए गुरुभागवत के मूर्ति प्रदाता व श्री गुरुभागवत एजुकेशनल ट्रस्ट के अध्यक्ष दौलत् सिह ठाकुर ने कहा की गुरु’ की अवधारणा मात्र ईश्वरीय कृपा अथवा संरक्षण प्रदान करने से परे एक मार्गदर्शक प्रकाश का प्रतीक है, जिसमें कि गुरु हमें अपनी कमियों को दूर करने (या पापों से मुक्त होने) और सद्गुणों का विकास करने में हमारी सहायता करते हैं। ’गुरु’ शब्द परम मानव मूल्यों का प्रतीक है, जो कि भक्त या शिष्य से अत्यधिक त्याग, धैर्य, समवेदना और दृढ़ निष्ठा की अपेक्षा करता है। यह न केवल उन गुरु के प्रति आजीवन प्रतिबद्धता है – जो कि इन मूल्यों के साकार रूप हैं, अपितु सभी परिस्थितियों में उनके प्रति दृढ़तापूर्वक भक्ति और विश्वास सहित सद्गुणों को बनाए रखना भी है। हालाँकि, आध्यात्मिक साधना का असली सार गुरु के नाम से दूसरों की सेवा करना, अपने आस-पास के लोगों के जीवन में खुशियाँ लाना और गरीबों एवं बेसहारा लोगों की सहायता करना है। गुरु के नाम से वंचितों की सेवा करना, यंत्रणा-ग्रस्त आत्माओं के चेहरे पर मुस्कान लाना और उन्हें सहायता प्रदान करना, गुरु-परंपरा का मर्म है। हमें यह समझना होगा कि ऐसे असंख्य व्यक्ति हैं, जो हमसे कहीं अधिक दुखी और ज़रूरतमंद हैं तथा हमसे भी कहीं अधिक गंभीर यातनाएँ भोग रहे हैं। सद्गुरु अपनी करुणा के माध्यम से हमारे भीतर समवेदना की ज्योत जलाते हैं, जिससे हमें उन लोगों की सहायता करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने की प्रेरणा मिलती है, जिन्हें इसकी आवश्यकता है, चाहे वे सहायता माँगे या ना माँगेआइए, हम ऐसे लोगों की सहायता करने का संकल्प लें।इस अवसर पर स्कूल के स्टाफ व अन्य अतिथि उपस्थित थे ।

रिपोर्ट –एम डी युसूफ खान
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