



बालोद-आराधना का अवसर पुण्योदय से प्राप्त होता है।इसमें भावो का महत्व होता है।उच्च भाव से की गई आराधना का फल अवश्य ही मिलता है


उक्ताशय के उदगार महावीर भवन में प्रवचन करते हुए संत श्री ऋषभ सागरजी ने व्यक्त किये।उन्होंने कहा कि चाहे आराधना करना हो या कोई पर्व मनाना हो उसके पीछे उद्देश्य को ध्यान में रखा जाना चाहिए।समझदार व्यक्ति उद्देश्य को ध्यान में रखकर ही क्रिया करता है।जैन शास्त्रों में नव पद की ओली को शाश्वत माना गया है।पर्व या उत्सव मनाने के पीछे उद्देश्य होता है प्रेम,उदारता, आदर, सहयोग आदि भावों में वृद्धि हो,और यह व्यवहार में दिखना भी चाहिए किन्तु आज इन भावों का आभाव दिखाई देता है,।व्यक्ति में नकारात्मक भाव अति शीघ्र घर कर जाते हैं ,यही कारण है कि समाज ही नही वरण परिवार में भी सामंजस्य का आभाव दिखाई देता है,।परिवार टूट रहे है, व्यक्ति भीड़ में भी अपने को अलग महसूस करता है,विचारों के मतभेद मनभेद तक पहुंच जाते है।जो रचनात्मक एवम सकारात्मक भाव नही रखते उनमे नकारात्मक भाव बढ़ने लगता है,परिवारो में भी इसका प्रभाव दिखाई देता है,।घर मे कोई दुखी या परेशान है तो इसका प्रभाव भी अन्य सदस्यों पर पड़ता है।जो दोगे वो पावोगे के तर्ज पर प्रेम ,सहयोग, सम्मान दो तो ये बढ़कर वापस प्राप्त होगा।
कुछ इन्ही भावो को लेकर कल से 5 दिवसीय 1 घंटे का शिविर प्रारंभ किया जा रहा है जिसका विषय है अच्छे पैरेंट्स कैसे बनें।