



बालोद


आज अंतरराष्ट्रीय संकेत भाषा दिवस है और हम आपको कुछ ऐसे लोगों से मिलाने जा रहे हैं जो बोल और सुन तो नहीं सकते लेकिन उन्हें खुले आसमान में जीने से आज कोई रोक नहीं सकता, उन्होंने अपनी कमियों को कहीं जाहिर नहीं होने दिया और अपने जीवन से संघर्ष करते रहे और आज इस मुकाम पर है कि डीफ कम्युनिटी के बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं खुद बोल व सुन पाने में अक्षम है लेकिन अन्य लोगों के जीवन में उजियारा ला रहे हैं और आम जीवन में जीने के सलीके और नीतिगत शिक्षा दे रहें हैं, मूक बधिरों के लिए बालोद में एकमात्र विद्यालय है जिसका नाम पारसनाथ दिव्यांग स्कूल है और वहां के शिक्षक दुष्यंत साहू जो कि खुद सुन और बोल नहीं पाते हैं पर उनकी कहानी सभी को प्रेरित करती है वो छत्तीसगढ डीफ़ एसोसिएशन में सचिव हैं, और ज़िले में समन्वयक के रूप में कार्य कर रहे हैं।
जानिए दुष्यंत का संघर्ष
बालोद ज़िले के गुरूर नगर में रहने वाले दुष्यंत साहू के संघर्ष की कहानी अनोखी है आज उन्हे देखकर कोई ये नहीं बोल सकता कि उन्हे अफसोस होता होगा, दुष्यंत बताते हैं वो बोल और सुन नहीं सकते लेकिन वे बहुत खुश हैं दुष्यंत ने बताया कि उन्हें बचपन में सामान्य लोगों के विद्यालय में दाखिला दिलाया गया था जहां काफ़ी दिक्कतें होती थी इसके बाद जैसे-जैसे उन्होंने संघर्ष किया नागपुर गए वहां साइन लैंग्वेज के बारे में जाना और सीखा उसके बाद वापस छत्तीसगढ़ आए यहां भी उन्हें संतुष्टि नहीं मिली इसके बाद भी इंदौर गए और वहां पर संकेत भाषा के लिए डिप्लोमा की पढ़ाई की और फिर काफी खुश हुए कि अब उनके जीवन में कुछ करने के लिए बेहतर अवसर है आज साइन लैंग्वेज आम जीवन में भी बेहद आवश्यक है दुष्यंत बनाते हैं कि वह आज तेरा बच्चों को संकेत भाषा की शिक्षा दे रहे हैं ताकि वह आत्मनिर्भर होकर अपना जीवन जी सकें उन्हें देखकर कोई नहीं बोल सकता कि उनके जीवन में कोई समस्याएं हैं समस्याएं हो सकती है परंतु वे आज एक सामान्य लोगों की तरह ही जीवन यापन करते हैं गाड़ी चलाते हैं मोबाइल उपयोग करते हैं आम जनता से रूबरू होते हैं उन्होंने अपनी कमियों को कभी अपनी नाकामियों में शामिल नहीं किया।
क्या है साइन लैंग्वेज?
जो लोग बोल या सुन नहीं सकते, वे अपनी भावनाओं, आइडियाज और शब्दों को इशारों में समझाते हैं. इन इशारों को समझने के लिए प्रोफेशनल लेवल पर कई संस्थानों में साइन लैंग्वेज कोर्स करवाए जाते हैं यह विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए बेहद अनिवार्य है आज बालोद जिले के इस दिव्यांग विद्यालय में ऐसे बच्चे अपने जीवन के लिए उज्जवल भविष्य की नींव रख रहे हैं और उसमें दुष्यंत अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
आम जन भी समझे संकेत भाषा
दुष्यंत और डीफ़ कम्युनिटी की यह इच्छा है कि आम जनता के बीच भी संकेत भाषा प्रचलन में आना चाहिए ताकि बल व सुन पाने में अक्षम लोगों की भावनाएं उन तक पहुंच पाए जो बुनियादी चीज संकेत भाषा की होती है उसे सामान्य रूप से सभी जगह पर लागू करना चाहिए ताकि इन जैसे विशेष देखभाल वाले बच्चों और लोगों को किसी तरह की कोई समस्या ना हो दुष्यंत ने विशेष जरूरतमंद वाले बच्चों के अधिकारों के लिए भी काफी लड़ाइयां लड़ी है वह विभिन्न विभागों के चक्कर भी करते हैं उन्हें उम्मीद है कि संकेत भाषा को सरकार भी हर जगह लागू करें या उनका उद्देश्य है और सरकार से उन्होंने यह अपील की है।
अभी 13 बच्चे ले रहे शिक्षा
पारस नाथ विद्यालय में वर्तमान में 13 बच्चे शिक्षा ले रहे हैं और सभी संकेत भाषा में निपुण हो रहे हैं ताकि वे आने वाले भविष्य में संकेत बात भाषा के माध्यम से अपना जीवन सामान सके आम लोगों के साथ आचरण व्यवहार स्थापित कर सके और अपने करियर के प्रति भी वे सजग रहें इस विद्यालय को खुले अभी महज 6 माह हुए हैं जैसे-जैसे लोगों को इसकी जानकारी होगी उम्मीद है कि यहां पर संकेत भाषा सीखने वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि हो पाए इस विद्यालय में दुष्यंत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और इसका संचालन एक ट्रस्ट कर रही है।
बाइट – दुष्यंत साहू, संकेत भाषा